संस्कृति

बद्रीनाथ धाम के विकास के लिए समझौता

-अशोक “प्रवृद्ध”
इंडियनऑयल, बीपीसीएल, एचपीसीएल, ओएनजीसी और गेल सहित भारत के शीर्ष तेल और गैस सार्वजनिक उपक्रमों के द्वारा आध्यात्मिक स्मार्ट हिल टाउन के रूप में उत्तराखंड में श्री बद्रीनाथ धाम के निर्माण और पुनर्विकास के लिए श्री बद्रीनाथ उत्थान चैरिटेबल ट्रस्ट के साथ एक समझौता ज्ञापनों (एमओयू)पर 6 मई गुरुवार को हस्ताक्षर किये जाने से बद्रीनाथ धाम के कायाकल्प होने और उस स्थान के दिन बहुरने की उम्मीद बढ़ गई है।समझौता ज्ञापन के तहतये सार्वजनिक उपक्रम परियोजना के पहले चरण में 99.60 करोड़ रुपये का योगदाननदी तटबंध के कार्य, सभी इलाकों तक वाहनों के पहुँचने लिए मार्ग निर्माण, पुल निर्माण, मौजूदा पुलों के सौंदर्यीकरण, आवास के साथ गुरुकुल सुविधाओं की स्थापना, शौचालय निर्माण व पेयजल सुविधा, स्ट्रीटलाइट्स, भित्ति चित्र निर्माण कार्य आदि विकासात्मक गतिविधियों के लिए देंगे। समझौते के समय उपस्थित केंद्र व उत्तराखंड राज्य सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों के दिग्गजों के अनुसार राज्य में अधिकधिक पर्यटकों को आकर्षित करके पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार के द्वारा की जा रही यह पहल निश्चय ही राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। समझौते के तहत श्री बद्रीनाथ धाम का कायाकल्प कार्य तीन साल के समय में पूरा होने की उम्मीद है।
उल्लेखनीय है कि भारत के चार प्रमुख धामों में से एक बद्रीनाथ नामक तीर्थस्थल उत्तर दिशा में हिमालय की अधित्यका परउत्तराखंड के चमोली जिले में गंगा नदी की मुख्य धारा के किनारे समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित बद्रीनाथशीत ऋतु में निर्जन रहने वाला एक स्थान एवं मंदिर है। बद्रीनाथ का नामकरण एक समय यहाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी बद्री के नाम पर हुआ है। पूर्णतः प्रकृत्ति की गोद में अवस्थित बद्रीनाथमंदिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक अखण्ड दीप निरंतर जलता रहता है। यह पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। पौराणिक मान्यतानुसार उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग धार्मिक- आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । भगवान विष्णु के बद्रीनाथ रूप को समर्पित बद्रीनाथ का यह मन्दिर ऋषिकेश से 214 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी, जो मूल रूप से तप्त कुंड वर्तमान के हॉट स्प्रिंग्स के पास एक गुफा में बना हुआ था ।मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप।बद्रीनाथ मंदिर के अन्दर 15 मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा है। इस मंदिर को धरती का वैकुण्ठभी कहा जाता है।पौराणिक कथा के अनुसार पूर्व में यह स्थान भगवान शिव भूमि अर्थात केदार भूमि के रूप में व्यवस्थित व प्रसिद्ध था, परन्तु भगवान विष्णु के द्वारा अपने ध्यानयोग के लिए स्थान की खोज किये जाने के समय अलकनंदा के पास स्थित शिवभूमि का यह मनोरम स्थान उनके मन को भाकर अत्यंत प्रिय लगा। नीलकंठ पर्वत के समीप वर्तमान चरणपादुका स्थल पर ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम पर वे बालक रूप धारण कर रोने लगे। एक बालक के करूण क्रंदन को सुन कर माता पार्वती व शिव उस बालक के पास आये और बालक से रोने का कारण पूछते हुए कहा कि तुम्हें क्या चाहिए? बालक ने ध्यानयोग करने के लिए शिवभूमि अर्थात केदार भूमि नामक उस स्थान की मांग की, जिसे पार्वती के आग्रह पर शिव ने मान लिया और और केदारनाथ की वह भूमि उस बालक को दे दी।इस प्रकार रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव पार्वती से शिवभूमि अर्थात केदार भूमि को अपने ध्यानयोग करने हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम सेप्रसिद्ध है।मंदिर का नाम बद्रीनाथ होने अर्थात पड़ने के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार भगवान विष्णु से किसी कारण वश रूठकर देवी लक्ष्मी के अपने मायके चले जाने पर विष्णु देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या करने लगे।जब लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई,तो लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुँच गई,जहाँ विष्णु तपस्या कर रहे थे।उस समय उस स्थान पर बदरी (बेर) का घना वन था और एक बेर के पेड़ में बैठकर भगवान विष्णु तपस्या कर रहे थे।यह देख लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथकी संज्ञाप्रदान की। भगवान विष्णु के यहां पर बद्री रूप में वास करने के कारण यह बद्रीनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।इस स्थान की पौराणिक व लौकिक मान्यता इतनी प्रसिद्ध है कि प्रत्येक हिन्दू की जीवन में एक बार बद्रीनाथ का दर्शनअवश्यकरने की कामना होती है। अत्यधिक शीत के कारण यहाँ पर स्थित अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन होने के कारण अलकनन्दा के सिर्फ दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करवनतुलसी की माला, चले की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाकर भगवान बद्रीनाथ की पूजा-अर्चना कर सुख, समृद्धि, स्वस्थता, दीर्घयुता की कामना करते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर गंगा नदी के अवतरित होने के समय वह बारह धाराओं में बंट गई।इस स्थान पर अवस्थित धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुईऔर यह स्थान बद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध होकर भगवान विष्णु का वास बना। यहाँ पर बद्रीनाथ की मूर्ति शालिग्राम शिला से निर्मितचतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। मान्यता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी।उस समय सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। लेकिन जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ कर दी।आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य की प्रचार यात्रा के समय बौद्ध मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक कर तिब्बत भाग गए। तब शंकराचार्य ने अलकनन्दा से मूर्ति को पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। आदि शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार ही आज भी मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है।बाद में मूर्ति पुन:स्थानान्तरित हो गई और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की। सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी।मंदिर में बद्रीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति है। सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बर्फ़ जमने पर जोशीमठ में ले जायी जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है। मान्यता है कि यहाँ स्थित एक गुफा में महर्षि वेदव्यासने महाभारत की रचना की थी और पांडवो के स्वर्ग जाने से पहले यह स्थान उनका अंतिम पड़ाव था, जहाँ वे रुके थे। यह भी मान्यत है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी।इस घटना का स्मरण ब्रह्मकपालनामसे किया जाता है। ब्रह्मकपाल एक ऊँची शिला है, जहाँ पितरो का तर्पण,श्राद्ध किया जाता है। मान्यता है कि यहाँ श्राद्ध करने से पितरो को मुक्ति मिल जाती है। बद्रीनाथ में अन्य दर्शनीय स्थलों में अलकनंदा के तट पर स्थित तप्त कुंड अर्थात गर्म झरना, धार्मिक अनुष्टानों हेतु प्रयोग में आने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल, पौराणिक मान्यताप्राप्त एक सांप-शेषनाग रुपी एक शिलाखंड-शेषनेत्र, भगवान विष्णु के पैरों के निशान वाली चरणपादुका, बद्रीनाथ के समीप स्थित बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ वर्तमान का गढ़वाल क्वीन आदि शामिल हैं। मान्यता है कि भगवान बद्रीनाथ के द्वार पर सभी श्रद्धालु की मनचाही इच्छा पूरी होती है। बद्रीनाथ के दर्शन कर लेने वाले व्यक्ति को माता के गर्भ में नहीं आना पड़ता है, अर्थात बद्रीनाथ का दर्शन करने वाले व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। इसके कारण इस स्थल की महता भारतीय संस्कृति में बढ़ जाती है, और प्रत्येक भारतीय जीवन में एक बार इस तीर्थस्थल की धर्म यात्रा करने की कामना करता है।
इसमें कोई शक नहीं कि धार्मिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण चार धामों में से एक बद्रीनाथ के विकास के लिए तेल और गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के शामिल होने से बद्रीनाथ धाम को स्मार्ट आध्यात्मिक नगर के रूप में विकसित करने के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के पूर्व घोषितविजन को साकार करने के द्वार खुल गए हैं। बद्रीनाथ के साथ ही केदारनाथ, उत्तरकाशी, यमुनोत्री तथा गंगोत्री के विकास से पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगी, जो राज्य व देश के विकास में महत्वपूर्ण साबित होगी। बद्रीनाथ जैसे स्थलों के विकास से और अधिक संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड सरकार और तेल तथा गैस क्षेत्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के संयुक्त प्रयासों से तीन वर्ष की अवधि में श्री बद्रीनाथधाम के उत्थान का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। उम्मीद है कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पूर्वघोषित विजनानुसार बद्रीनाथ तीर्थ स्थान को मिनी स्मार्ट तथा आध्यात्मिक नगर के रूप में क्षेत्र की धार्मिक पवित्रता और पौराणिक महत्व से समझौता किए बिना विकसित करने के विजन की दिशा में यह समझौता मील का पत्थर साबित होगी ।

Post by Kausal kumar

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