संपादकीय

वन्य जीव सृष्टि पर टिका मानव जीवन का अस्तित्व

(विश्व वन्यजीव दिवस – 3 मार्च 2022)
लेखक – डॉ. प्रितम भी. गेडाम
वन्य पशु, पक्षी, जीव जंतु प्रकृति के नियमों का पालन करते हैं और प्रकृति का संरक्षण करते हैं, स्वार्थी मनुष्य की भांति पशु-पक्षियों की आवश्यकता अनगिनत नहीं होती है। प्रत्येक वन्य जीव पशु-पक्षी प्रकृति के समृद्धि के लिए कार्य करते है। पृथ्वी पर जीवन चक्र सुचारू रूप से चलाने में यह मुख्य कार्यवाहक है, वन्यजीवों और पक्षियों द्वारा ही वन और प्रकृति समृद्ध होते हैं और मानव जीवन को गति प्रदान करते हैं। जहां प्रकृति समृद्ध है, वहां शुद्ध जल और शुद्ध ऑक्सीजन के स्रोत समृद्ध हैं, प्राणी, वनौषधी, जंगल समृद्ध हैं। मिट्टी उपजाऊ और फसल गुणवत्तापूर्ण तैयार होती है, ऐसी जगहों पर बीमारियां कम और इंसान का सेहतमंद आयुष्मान दीर्घ होता है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या कम होकर ओजोन परत की सुरक्षा बढ़ती है। सुखद वातावरण और पौष्टिक भोजन मिलता है, प्राकृतिक आपदाएं कम होकर मौसम का चक्र भी सुचारू रूप से चलता है।
20 दिसंबर 2013 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 68 वें सत्र में, 3 मार्च को “विश्व वन्यजीव दिवस” घोषित किया, ‘विश्व वन्यजीव दिवसÓ दुनिया के वन्य जीवों और पौधों के बारे में जागरूकता बढ़ाने सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक वार्षिक आयोजन बन गया है। 2022 में विश्व वन्यजीव दिवस “पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना” थीम के तहत मनाया जाएगा, जंगली जीवों और वनस्पतियों की सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण की स्थिति पर ध्यान आकर्षित करने और उनके संरक्षण के लिए समाधान लागू करना इसका उद्देश्य है।
भारत एक जैव-विविधता वाला देश है, जिसमें दुनिया की ज्ञात वन्यजीव प्रजातियों का लगभग 6.5त्न हिस्सा है। विश्व के लगभग 7.6त्न स्तनधारी और 12.6त्न पक्षी भारत में पाए जाते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) रेड लिस्ट ऑफ थ्रेड स्पीशीज के आंकड़ों के अनुसार, जंगली जीवों और वनस्पतियों की 8,400 से अधिक प्रजातियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, जबकि 30,000 से अधिक को लुप्तप्राय या असुरक्षित समझा जाता है। हर जगह लोग भोजन, ईंधन, दवाओं, आवास और कपड़ों से लेकर हमारी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए वन्य जीवन और जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर निर्भर हैं। करोड़ों लोग अपनी आजीविका और आर्थिक अवसरों के स्रोत के रूप में प्रकृति पर आश्रित रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र की “स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड फॉरेस्ट 2018” रिपोर्ट में पाया गया कि, दुनिया की आधी से अधिक आबादी पीने के पानी के साथ-साथ कृषि और उद्योग के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी के लिए जंगल के पानी पर निर्भर है। 2018 एफएओ रिपोर्ट अनुसार, पृथ्वी के मीठे पानी का तीन-चौथाई हिस्सा जंगल के पानी से आता है।
2019 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने बताया कि भारत में, अवैध वन्यजीव व्यापार “तेजी से विस्तार कर रहा है, हाल ही में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी 2020 तक का समग्र डेटा जारी किया था। 2020 के लिए जारी भारत में अपराध रिपोर्ट ने संकेत दिया कि पर्यावरण से संबंधित अपराधों के लिए दर्ज मामलों की संख्या 2019 में 34,676 से बढ़कर 2020 में 61,767 तक हो गई। वन सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित द्विवार्षिक भारत की वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और सिक्किम ने 2019-2021 के दौरान 1,020 वर्ग किलोमीटर जंगल खो दिया है। भारत ने राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में परिकल्पित अपने भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत हिस्से को वनों के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा है। संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा, परंतु मानव ही प्रकृति से छेड़छाड़ कर नैसर्गिक नियमों को भंग कर रहा हैं। दुनिया का सबसे खतरनाक प्राणी मनुष्य है, वह अपने स्वार्थ और लालच के कारण किसी को भी नुकसान पहुंचाने से नहीं डरता, सरकारी नियमों की सरेआम अवमानना की जाती है। मनुष्य प्रकृति को समाप्त न करके अपने ही अस्तित्व को समाप्त कर रहा है, यह वास्तविक सत्य को समझना बहुत जरूरी है। विकास के नाम पर हरित क्षेत्रों से पेड़ काटकर हाईवे, कंपनियां, फार्म हाउस, होटल बनाए जा रहे हैं, नतीजतन, जानवरों के आवागमन के मार्ग अवरुद्ध होते है, वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट होते है।
संरक्षित क्षेत्र का अभाव, शहरीकरण, परिवहन नेटवर्क, बढ़ती मानव जनसंख्या के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ते जा रहे है। भारत, दुनिया के लगभग 75 प्रतिशत बाघों का घर है। ऐसा माना जाता है कि 1947 में स्वतंत्रता के समय लगभग 40,000 बाघ थे, लेकिन शिकार और आवास के नुकसान ने बाघों की आबादी को खतरनाक रूप से निम्न स्तर तक गिरा दिया है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में भारत में कुल 126 बाघों की मौत हुई, जो एक दशक में सबसे ज्यादा है, इसमे से 60 बाघ संरक्षित क्षेत्रों के बाहर शिकारियों, दुर्घटनाओं और मानव-पशु संघर्ष के शिकार हुए हैं। बाघों की मौत पर ‘कंजर्वेशन लेन्सेस एंड वाइल्डलाइफÓ (सीएलएंडब्ल्यू) समूह ने बताया कि, उनके आंकड़ों के अनुसार, “2021 में, 139 बाघों की मृत्यु हुई,” सीएलएंडब्ल्यू, वन विभाग के अधिकारियों, समाचार पत्रों की रिपोर्ट और स्थानीय इनपुट की मदद से अपनी रिपोर्ट तैयार करता है। भारत में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2014-15 और वर्ष 2018-19 के बीच 500 से अधिक हाथियों की मौत हो गई और 2,361 लोग हाथियों के हमले में मारे गए। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी अनुसार, महाराष्ट्र में बाघ के हमले से पिछले 3 साल में कुल 211 लोगों की जान गई है, साथ ही विभिन्न घटनाओं में 879 लोग बुरी तरह जख्मी हुए है। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 में, भारत ने अवैध शिकार और दुर्घटनाओं में 500 तेंदुए को खो दिया है, रेल और सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा तेंदुए की मौत हुई है।
प्राकृतिक संसाधनों का हद से ज्यादा दोहन, शहरीकरण, ईंधन, रसायनों का अति प्रयोग, औद्योगिकीकरण, प्रदूषण, ई-कचरा, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक साधनों का प्रयोग अत्यधिक हुआ है परिणामस्वरूप, पशु-पक्षी जंगली जानवर, वनौषधी, प्राकृतिक धरोहर तेजी से नष्ट हो रही हैं। बढ़ती जनसंख्या अपने साथ जरूरतों को बढ़ा रही है। जिससे सीमित संसाधनों में असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति करने पर दबाव आ रहा है इससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ गया है, लगातार तापमान और पर्यावरण का चक्र बिगड़ रहा है जिससे प्राकृतिक आपदाएं लगातार बढ़ रही हैं। हम विज्ञान और तकनीकी संसाधनों के बिना रह सकते हैं लेकिन इस नैसर्गिक प्रकृति के बिना नहीं, क्योंकि ऑक्सीजन, पानी, धूप, खाद्य उत्पादन श्रृंखला, प्राकृतिक संसाधन, तापमान का संतुलन यह प्रकृति का उपहार है और वन्य जीवों का संरक्षण हम सबकी जिम्मेदारी है।
(श्रीजी एक्सप्रेस डिजीटल टीम)

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