संपादकीय

सेंट्रल विस्टा निर्माण पर उपजते सवाल

सौरभ वार्ष्णेय

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट (नई विशालकाय संसद निर्माण कार्य) का अंग्रेजी नाम है। आखिरकार इस प्रोजेक्ट पर ऐसा क्या है जिस पर देश के विपक्ष नेसवाल उठा दिया है। वहीं विरोध सिर्फ इस बात का है कि कोविड महामारी के समय यह निर्माण रोक देना चाहिए ? जबकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का अहम विजन प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट की बात करें तो इसके अंदर विशालकाय संसद भवन, एक केंद्रीय सचिवालय के अलावा कई अत्याधुनिक भवन बनाये व राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक की तीन किलोमीटर के क्षेत्रफाल का नए सिरे से विकास कार्य होना है। अब इस पर न्यायालय में रोक लगाने की याचिका से लगता है कि यह प्रोजेेक्ट अब क्या रंग लाएगा यह भविष्य के गर्त में है। हालांकि इस प्रोजेक्ट से किसी की न तो जमीन जा रही है न किसी को परेशानी। यह पूरे प्रोजेक्ट पर 971 करोड़ रुपये की लागत अनुमान लगाया गया है।

वहीं अगर न्यायालय पर गौर फरमाया जाये तो केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के बढ़ते मामलों के बीच यहां सेंट्रल विस्टा के निर्माण पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका इस परियोजना को रोकने की एक और कोशिश है, जिसे शुरू से ही बाधित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र ने आरोप लगाया कि याचिका दायर करने की मंशा इस बात से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं ने इसी परियोजना पर सवाल उठाया है, जबकि दिल्ली मेट्रो समेत कई अन्य एजेंसियां राष्ट्रीय राजधानी में निर्माण कार्य कर रही हैं। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि चूंकि केंद्र का यह शपथपत्र अभी रिकॉर्ड में नहीं है, इसलिए मामले की सुनवाई 12 मई को होगी। अदालत ने याचिकाकर्ताओं आन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी की शीघ्र सुनवाई की अर्जी भी स्वीकार कर ली। याचिकर्ताओं ने दलील दी है कि यह परियोजना आवश्यक गतिविधि नहीं है और इसलिए, महामारी के मद्देनजर इस पर रोक लगाई जा सकती है। केंद्र सरकार ने 10 मई को दायर शपथ पत्र में कहा कि दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने मौजूदा कर्फ्यू के दौरान निर्माण गतिविधियों की अनुमति दी है और श्रमिक निर्माण स्थल पर रह रहे हैं। केंद्र ने कहा कि 19 अप्रैल को कर्फ्यू लगने से पहले ही श्रमिक इस कार्य में लगे थे। सरकार ने कहा, ”इस बीच, कार्यस्थल पर भी कोविड-19 से बचने के अनुरूप केंद्र बनाया गया है, जिसमें वे 250 कर्मी रह रहे हैं जिन्होंने काम करते रहने की इच्छा जताई है। उसने कहा, ”इस केंद्र में कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जा रहा है। स्वस्छता, थर्मल जांच, शारीरिक/सामाजिक दूरी और मास्क पहनने समेत कारोना वायरस से निपटने के लिए आवश्यक नियमों का पालन किया जा रहा है। इसमें कहा गया है कि ठेकेदार ने संबंधित श्रमिकों का कोविड-19 संबंधी स्वास्थ्य बीमा कराया है और स्थल पर आरटी-पीसीआर जांच, पृथक-वास और चिकित्सकीय मदद के लिए विशेष केंद्र बनया गया है। शपथ पत्र में कहा गया है कि परियोजना पर काम कर रहे श्रमिक कार्यस्थल पर ही रह रहे हैं और सामाजिक दूरी समेत कोविड-19 संबंधी सभी नियमों का पालन कर रहे हैं। सरकार ने कहा, ”यह कहना गलत है कि श्रमिकों को सराय काले खां से रोजाना कार्यस्थल पर लाया जा रहा है, इसलिए याचिकाकर्ताओं के मामले का पूरा आधार ही त्रुटिपूर्ण है और गलत है।इससे पहले, अदालत ने चार मई को जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए 17 मई की तारीख तय की थी और कहा था कि वह पहले उच्चतम न्यायालय के पांच जनवरी के फैसले पर गौर करना चाहती है। इसके बाद याचिकाकर्ता अदालत के चार मई के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय गए थे, जिसने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह मामला उच्च न्यायालय में लंबित है। शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि याचिका में राजपथ, सेंट्रल विस्टा विस्तार और उद्यान में चल रहे निर्माण कार्य को जारी रखने के लिए प्रदान की गई अनुमति का विरोध किया गया है। उन्होंने शीर्ष अदालत से कहा था, ”मजदूरों को सराय काले खां और करोल बाग क्षेत्र से राजपथ और सेंट्रल विस्टा तक ले जाया जा रहा है, जहां निर्माण कार्य चल रहा है। इससे उनके बीच संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ जाती है।शीर्ष अदालत ने शीघ्र सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय के पास जाने को कहा था। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में अर्जी दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि यदि परियोजना को महामारी के दौरान जारी रहने की अनुमति दी गई तो इससे काफी संक्रमण फैल सकता है। उन्होंने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि ”चरमराती स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और निर्माण स्थल पर कार्यरत श्रमिकों का जीवन जोखिम में होने के मद्देनजर परियोजना का जारी रहना चिंता का विषय है। अधिवक्ताओं गौतम खजांची और प्रद्युम्न कायस्थ के माध्यम से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि इस परियोजना में राजपथ और इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक पर निर्माण गतिविधि प्रस्तावित है। इस परियोजना के तहत एक नए संसद भवन, एक नए आवासीय परिसर के निर्माण की परिकल्पना की गई है जिसमें प्रधानमंत्री और उप-राष्ट्रपति के आवास के साथ-साथ कई नए कार्यालय भवन और मंत्रालय के कार्यालयों के लिए केंद्रीय सचिवालय का निर्माण किया जाना है।अब अगली सुनवाई का इंतजार करना पड़ेगा।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट(विशालकाय नया संसद भवन ) की खास बातें

  • सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट त्रिकोण आकार का होगा। जिसका क्षेत्रफल 64,500 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला होगा। इस नई संसद भवन में संासदों के एक साथ 1,224 बैठने की व्यवस्था होगी। लोकसभा सदन में 888 सांसदों की क्षमता होगी, जबकि राज्यसभा सदन में 384 सांसदों की जगह होगी। यह व्यवस्था भविष्य में सांसदों की संभावित संख्या के मद्देनजर की जा रही है। अभी लोकसभा की क्षमता 545 और राज्यसभा की क्षमता 245 सांसदों की है। संसद की नई इमारत में सभी सांसदों को अलग से अपना दफ्तर भी मिलेगा। इस सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर कुल 971 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। निर्माण कार्य की निगरानी लोकसभा सचिवालय, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के सदस्यों और सीपीडब्ल्यूडी,एनडीएमसी और आर्किटेक्ट और डिजाइनरों के हाथों में होगी। संसद की नई इमारत का निर्माण 2022 तक पूरा हो जाने की संभावना है। जबकि, पूरा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के पूर्ण होने की समय-सीमा 2024 रखी गई है।

हमारी मौजूदा संसद भवन का इतिहास
संसद भवन का निर्माण ब्रिटिश कार्यकाल में हुआ जिसकी नींव 12 फरवरी 1921 को रखी गई थी वॉयसराय लॉर्ड इरविन ने 18 जनवरी, 1927 को उद्घाटन किया था। उस समय इस निर्माण कार्य पर लगभग 83 लाख रुपये की लागत आई इसकी डिजाइन एडमिन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने तैयार की थी। संसद भवन के निर्माण में तब कुल 6 साल लगे थे।

60 पूर्व नौकरशाहों की प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर सेन्ट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना पर चिंता 
देश के 60 पूर्व नौकरशाहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर केन्द्र की सेन्ट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे वक्त में जब जन स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए भारी भरकम धनराशि की जरूरत है तब यह कदम गैर जिम्मेदारी भरा है।  पत्र को केन्द्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री हरदीप पुरी को भी संबोधित किया गया है। पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि संसद में इस पर कोई बहस अथवा चर्चा नहीं हुई। पत्र में कहा गया है कि कंपनी का चयन और इसकी प्रक्रियाओं ने बहुत सारे प्रश्न खड़े किए हैं जिनका उत्तर नहीं मिला है। आगे पत्र में कहा गया कोविड-19 से उबरने के बाद जब सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए, लोगों को भरण-पोषण प्रदान करने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक बड़ी धनराशि की आवश्यकता होगी, तो ऐसे वक्त में 20,000 करोड़ रुपये की लागत से पूरे सेंट्रल विस्टा को नया स्वरूप देने का प्रस्ताव गैरजिम्मेदाराना प्रतीत होता है।

Post By Saurabh Varshney Editor Shreeji express Hindi Dainik Group

नोट- (कृपया इस आलेख को उपयोग करते समय लेखक की अनुमति आवश्यक है।)

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