संपादकीय

देश में तेल की कीमतों में लगी आग

तिशा वार्ष्णेय
इसे क्या कहां जाये ? आपदा में अवसर या देश में जनता पर तेल कंपनियों की धमाचौकड़ी? जी हां पांच राज्यों में चुनाव समाप्त होते ही देशमें तेलकंपनियों ने पेट्रोल के दाम में छोटी ही सही लेकिन बढ़ोतरी कर दी है। ज्ञात रहे कि विगत 2 मई को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आए थे। इसके बाद तो देश में तेल की कीमतों में आग लगना शुरु हो गई। चाहे देश में कोरोना महामारी फैल रही हो लोग अस्पताल में भागने दौड़ने को मजबूर हैं लेकिन इन कंपनियों पर कोई नकेल कसने वाला नहीं है। जब समूचा देश एक भयंकर संकट से गुजर रहा है, तब केंद्र सरकार का यह परम कर्तव्य है वह जनता की मुश्किलों को कम करने के लिए तात्कालिक या फिर दीर्घकालिक कदम उठाए। मगर ऐसा नहीं हो रहा है। सवाल है कि जिस समय लोगों की आय में कमी आ रही हो, बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया हो, तब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी की क्या तुक है! यह दलील दी जा सकती है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर निर्भर है। लेकिन अव्वल तो देश में संकट के वक्त सरकार चाहे तो तेल कंपनियों को कीमतों को नियंत्रित रखने की सलाह दे सकती है। फिर ऐसा क्यों है कि पिछले डेढ़-दो महीने में, जब कुछ राज्यों में चुनाव चल रहे थे, तब पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर बने हुए थे और अब अचानक ही इसमें लगातार बढ़ोतरी होने लगी है! गौरतलब है कि हाल के इजाफे के बाद देश के कुछ हिस्सों में पेट्रोल की कीमत प्रति लीटर सौ रुपए से ज्यादा और डीजल नब्बे रुपए के पार हो गई है। कुछ समय पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कमी होने के चलते दाम कुछ कम हुए थे, लेकिन उसे नाम मात्र की कमी कहा जा सकता है। अब फिर जिस तरह कीमतों में इजाफा होना शुरू हो गया है, उससे यह आशंका पैदा हो रही है कि क्या इसका गंभीर प्रभाव दूसरे क्षेत्रों पर पड़ेगा! हो सकता है कि पेट्रोल के दाम का असर मुख्य रूप से निजी वाहन से सफर करने वालों पर पड़े, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का सीधा असर आम लोगों की रोजमर्रा की गतिविधियों से लेकर खाने की थाली तक पड़ता है।बाजार में थोक और खुदरा बाजार में तमाम जरूरत की चीजों की उपलब्धता और उसकी कीमतें इस बात पर निर्भर करती है कि उसके लिए माल ढोने वाले वाहन व्यापारियों से कितना किराया वसूलते हैं। डीजल के दाम बढऩे के बाद आमतौर पर माल ढुुलाई के किराए में बढ़ोतरी हो जाती है। जाहिर है, यह रकम वस्तुओं की थोक या फिर खुदरा कीमतों में जुड़ जाती है और सामान महंगा हो जाता है। यह साधारण गणित है। इसके बावजूद तेल कंपनियों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि वक्त की नजाकत के मद्देनजर वे पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नियंत्रित रखें। पिछले साल भर से ज्यादा से कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन जैसे हालात ने आम लोगों के सामने काफी मुश्किलें पैदा कर दी हैं। एक ओर जहां गरीब आबादी के सामने खुद को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है, वहीं मध्यवर्ग की क्रयशक्ति में भी तेज गिरावट आई है।व्यक्तिगत जमापूंजी के सहारे बाजार या अर्थव्यवस्था लंबे समय तक नहीं खिंच सकती। सरकार के सामने यह एक बड़ा काम है कि वह लॉकडाउन और लोगों के रोजी-रोजगार के बीच कैसे संतुलन बिठाती है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि समूचे देश की अर्थव्यवस्था अच्छी या बुरी हालत के संदर्भ में पेट्रोल और डीजल की कीमतों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। अगर देश के लोगों की क्रयशक्ति संतोषजनक रहेगी तो इससे बाजार का रुख बेहतरी की ओर रहेगा और अर्थव्यवस्था भी रफ्तार पकड़ेगी।वहीं, अमेरिका के आधे से ज्यादा ईस्ट कोस्ट में फ्यूल सप्लाई करने वाली कंपनी कोलोनियल पर साइबर अटैक हुआ है। इस कारण कंपनी का पूरा नेटवर्क बंद हो गया है। कंपनी ने इस साइबर अटैक की पहचान रैनसमवेयर हमले के तौर पर की है। पाइपलाइन नेटवर्क बंद होने से कीमतें बढऩे की आशंका पैदा हो गई हैं। इसका कारण यह है कि गर्मियों का सीजन शुरू होने के कारण डिमांड बढऩे वाली है। जानकारों का कहना है कि ईस्ट कोस्ट क्षेत्र में ईंधन की सप्लाई में इस पाइपलाइन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। इन राज्यों के 45 फीसदी ईंधन की आपूर्ति इसी पाइपलाइन के जरिए होती है। हमले के बाद से मरम्मत का काम जारी है। फिलहाल यहां ईंधन की सप्लाई सड़क मार्ग से करने पर विचार चल रहा है। जानकारों का मानना है कि पाइपलाइन के ठप होने से ईस्ट कोस्ट राज्यों में ईंधन की कीमतों में 2-3 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है। यदि पाइपलाइन ज्यादा दिनों तक प्रभावित रहती है तो इसका असर ज्यादा हो सकता है। हालांकि आज १४ मई तक पेट्रोल के दामों में इजाफा नहीं हो पाया है।

 

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