डॉ. श्रीनाथ सहाय
देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर थमने की बजाय नित नए रिकार्ड बना रही है। सारी कोशिशों के बावजूद बात बनती दिख नहीं रही है। इस बीच आंध्र प्रदेश में कोरोना का नया स्ट्रेन मिलने की खबर ने चिंता बढ़ा दी है। निस्संदेह देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना संक्रमण में जिस तरह तेजी आई है और अस्पतालों में जगह न मिलने व ऑक्सीजन की कमी से जिस तरह से लोग मर रहे हैं, भविष्य की तैयारी के लिये लॉकडाउन अपरिहार्य माना जाने लगा है। भारत ही नहीं, विदेशी विशेषज्ञ भी मौजूदा संकट में लॉकडाउन को उपयोगी मान रहे हैं। वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की तीसरी लहर भी आ सकती है। कोरोना की रोकथाम के लिए प्रदेश सरकारें अपने हिसाब से आंशिक लॉकडाउन और कर्फ्यू का सहारा ले रही हैं। वहीं खबरें ये भी आ रही है कि सरकार पिछले साल की भांति सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाकर स्थिति संभालने की कोशिश करेगी। इस बीच सम्पूर्ण लॉकडाउन की उड़ती खबरों को लेकर इस बात की चर्चाएं शुरू हो गई है कि क्या लॉकडाउन ही कोरोना की रोकथाम का अंतिम उपाय है? अगर सम्पूर्ण लॉकडाउन लगेगा तो अर्थव्यवस्था से लेकर गरीब तबके का क्या होगा? आखिरकार लॉकडाउन कितने समय तक लगेगा? सवाल कई हैं, लेकिन वर्तमान में इन सवालों का जवाब किसी के पास भी नहीं है। कोरोना से निपटने का पिछली बार एक पक्ष था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। हर पक्ष का एक विपक्ष खड़ा हो रहा है, तो कहीं बेचैनी है, तो कहीं मजबूरियों से आजिज हकीकत सामने हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लाख कोशिशों के बावजूद देश के हालात फिर वहीं पहुंच गए हैं, जहां नहीं पहुंचने थे। केंद्र और राज्य सरकारों ने हरचंद कोशिश कर ली। हाईकोर्ट की फटकार की भी परवाह नहीं की। सुप्रीम कोर्ट जाकर अपने लिए खास मंजूरी ले आए कि लॉकडाउन न लगाना पड़े। लेकिन आखिरकार उन्हें भी लॉकडाउन ही आखिरी रास्ता दिख रहा है। महाराष्ट्र ने सख्ती दिखाई तो फायदा भी दिख रहा है। अप्रैल के आखिरी दस दिनों में सिर्फ मुंबई में कोरोना पॉजिटिव मामलों में 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। जहां 20 अप्रैल को शहर में 7,192 मामले सामने आए, वहीं 29 अप्रैल तक यह गिनती गिरकर 4,174 पहुंच चुकी थी। 21 अप्रैल से सरकार ने राज्य में लगभग लॉकडाउन जैसे नियम लागू कर दिए थे, उसी का यह नतीजा है और अब ये सारी पाबंदियां 15 मई तक बढ़ाई जा रही हैं। सीएमआईई की ताजा रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल भर में 98 लाख लोगों की नौकरी गई है। 2020-21 के दौरान देश में कुल 8.59 करोड़ लोग किसी न किसी तरह की नौकरी में लगे थे। और इस साल मार्च तक यह गिनती घटकर सिर्फ 7.62 करोड़ रह गई है। और अब कोरोना का दूसरा झटका और उसके साथ जगह-जगह लॉकडाउन या लॉकडाउन से मिलते-जुलते नियम-कायदे रोजगार के लिए दोबारा नया खतरा खड़ा कर रहे हैं। शहरों में बीमारी के असर और फैलने पर तो इन पाबंदियों से रोक लगेगी, लेकिन इस चक्कर में लाखों की रोजी-रोटी एक बार फिर दांव पर लग गई है। और साथ में दूसरे खतरे भी खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा डर फिर वही है, जो पिछले साल बेबुनियाद साबित हुआ। शहरों से जाने वाले लोग अपने साथ बीमारी भी गांवों में पहुंचा देंगे। यह डर इस बार ज्यादा गहरा है, क्योंकि इस बार गांवों में पहले जैसी चौकसी नहीं दिख रही है। बाहर से आने वाले बहुत से लोग बिना क्वारंटीन या आइसोलेशन की कवायद से गुजरे सीधे अपने-अपने घर तक पहुंच गए हैं और काम में भी जुट गए हैं। दूसरी तरफ, चुनाव प्रचार और धार्मिक आयोजनों के फेर में बहुत से गांवों तक कोरोना का प्रकोप पहुंच चुका है। शहरों के मुकाबले गांवों में जांच भी बहुत कम है और इलाज के साधन भी। इसलिए यह पता लगना भी आसान नहीं कि किस गांव में कब कौन कोरोना पॉजिटिव निकलता है, और पता चल भी जाए, तो इलाज मिलना और मुश्किल। संकट इस बात से और गहरा जाता है कि हमारी अर्थव्यवस्था अभी तक पिछले साल के लॉकडाउन के असर से पूरी तरह निकल नहीं पाई है। अब अगर दोबारा वैसे ही हालात बन गए, तो फिर झटका गंभीर होगा। हालांकि, अभी तक तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और ब्रोकरेजेज ने भारत की जीडीपी में बढ़त के अनुमान या तो बरकरार रखे हैं या उनमें सुधार किया है। लेकिन साथ ही उनमें से ज्यादातर चेता चुके थे कि कोरोना की दूसरी लहर का असर इसमें शामिल नहीं है और अगर दोबारा लॉकडाउन की नौबत आई, तो हालात बिगड़ सकते हैं। रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स ने चेतावनी दी है कि कोरोना की दूसरी लहर से फिर कारोबार में अड़चन का खतरा है और इसकी वजह से भारत की आर्थिक तरक्की को गंभीर नुकसान हो सकता है और इसकी वजह से एजेंसी भारत की तरक्की का अपना अनुमान घटाने पर मजबूर हो सकती है। एसऐंडपी ने इस साल भारत की जीडीपी में 11 प्रतिशत बढ़त का अनुमान दिया हुआ है, लेकिन उसका कहना है कि रोजाना तीन लाख से ज्यादा मामले आने से देश की स्वास्थ्य सुविधाओं पर भारी दबाव पड़ रहा है, ऐसा ही चला, तो आर्थिक सुधार मुश्किल में पड़ सकते हैं। यूं ही देश में औद्योगिक उत्पादन की हालत ठीक नहीं है और लंबे दौर के हिसाब से यहां जीडीपी के 10 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है। यूबीएस के एक रिसर्च नोट में कहा गया है कि भारत में कोरोना के मामलों की बढ़ती गिनती से विदेशी निवेशक व्याकुल हो रहे हैं और घबराहट में पैसा निकाल सकते हैं। लेकिन शेयर बाजार से ज्यादा बड़ी फिक्र है कि हमारे शहरों के बाजार खुले रहेंगे या नहीं। अगर वहां ताले लग गए, तो फिर काफी कुछ बिगड़ सकता है और इस वक्त खतरा यही है कि कोरोना को रोकने के दूसरे सारे रास्ते नाकाम होने पर सरकारें फिर एक बार लॉकडाउन का ही सहारा लेती नजर आ रही हैं। अभी तक सभी जानकार इसके खिलाफ राय देते रहे हैं और सरकारें भी पूरी कोशिश में रहीं कि लॉकडाउन न लगाना पड़े।अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं कि कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक होने के बावजूद अर्थव्यवस्था पर उसका असर शायद काफी कम रह सकता है, क्योंकि लॉकडाउन नहीं लगा है। मगर अब जो नए हालात दिख रहे हैं, उसमें भारतीय अर्थव्यवस्था कब तक और कितनी बची रहेगी, कहना मुश्किल है। उद्योग जगत की प्रतिनिधि संस्था सीआईआई ने देश में संक्रमण के विस्तार को नियंत्रित करने के लिये आर्थिक गतिविधियों में कटौती तथा सख्त कदम उठाये जाने की मांग की है। निश्चिय ही अब केंद्र सरकार को पिछले लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से सबक लेकर संक्रमण के चक्र को तोडऩे का प्रयास करना चाहिए। लेकिन सरकार को लॉकडाउन लगाने से पहले कमजोर वर्ग के लोगों को व्यापक राहत देने का कार्यक्रम लागू करना चाहिए।
(लेखक राज्य मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
