संस्कृति

सौभाग्य, संतान, सुख शांति एवं ऐश्वर्य प्रदायिणी रुक्मिणी द्वादशी

अशोक प्रवृद्ध
लक्ष्मी का अवतार मानी जाने वाली रुक्मिणी भगवान कृष्ण की पत्नी थी , जिन्होंने श्रीकृष्ण से विवाह किया था ।रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियों में प्रमुख थीं।वे विदर्भ नरेश महाराज भीष्मक की पुत्री थीं।वे साक्षातलक्ष्मी की अवतार थीं।युवावस्था होने पर उन्हें श्रीकृष्ण के सौन्दर्य,बल-पराक्रम,गुण,वैभव आदि की जानकारी मिली और उन्होंने श्रीकृष्ण को मन ही मन वर मन उनसे विवाह कर ली।उन्होंने श्रीकृष्ण के पास अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा।रुक्मिणी का भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता था।अत: श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर अपने साथ विवाह कर लिया।पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार चराचर जगत में रुक्मिणी और राधा का संबंध श्रीकृष्ण से है और संसार रुक्मिणी को श्रीकृष्ण की पत्नी और राधा को श्रीकृष्ण की प्रेमिका के रूप में मानता है।विविध पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार लक्ष्मी क्षीरसागर में अपने पति श्रीविष्णु के साथ रहती हैं एवं अपने अवतरण स्वरुप में राधा के रूप में कृष्ण के साथ गोलोक में रहती हैं। महाभारत में लक्ष्मी के विष्णुपत्नी लक्ष्मी एवं राज्यलक्ष्मी ऐसे दो प्रकार बताए गए हैं। इनमें से लक्ष्मी हमेशा विष्णु के पास रहती हैं एवं राज्यलक्ष्मी पराक्रमी राजाओं के साथ विचरण करती हैं।ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार विष्णु के दक्षिणांग से लक्ष्मी का, एवं वामांग से लक्ष्मी के ही अन्य एक अवतार राधा का जन्म हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण में निर्दिष्ट लक्ष्मी के अवतार एवं उनके प्रकट होने के स्थान अंकित हैं।इसमें महालक्ष्मी को वैकुंठ , स्वर्गलक्ष्मी को स्वर्ग , गोलोक में राधा जी , पाताल और भूलोक में राजलक्ष्मी (सीता) जी, गृह में गृहलक्ष्मी , गोलोक में सुरभि (रुक्मणी) ,यज्ञ में दक्षिणा और संसार के प्रत्येक वस्तु में शोभा का निवास बतलाया गया है ।रूक्मिणी जन्म के संदर्भ मेंपौराणिक ग्रन्थों में एक कथा का वर्णन मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार देवी रूक्मिणी पूर्व जन्म एक ब्राह्मणी थी। युवावस्था में ही इन्हें विधवा होना पड़ा। इसके बाद यह भगवान विष्णु की पूजा आराधना में समय बिताने लगी। निरन्तर भगवान विष्णु की भक्ति से इन्हें अगले जन्म में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और यह लक्ष्मी तुल्य बन गयी। लक्ष्मी रहस्य का रूपक के रूप में वर्णन करने वाली अनेकानेक वृतांत और कथाएं महाभारत , पुराणादि ग्रन्थों में वर्णित हैं। महाभारत केके अनुशासन पर्व में लक्ष्मी के रहस्य से संबंधित एक प्रसंग लक्ष्मी-रुक्मिणी संवाद है ।जिसमें युधिष्ठिर के द्वारा पूछे जाने पर एक प्रश्न के उतर में भीष्म ने लक्ष्मी एवं रुक्मिणी के दरम्यान हुए एक संवाद का उल्लेख करते हुए बताया था कि लक्ष्मी-रुक्मिणी संवाद के क्रम में लक्ष्मी ने रुक्मिणी से कहा था, कि मेरा निवास तुममें अर्थात रुक्मिणी में और राधा में समानता से है तथा गोकुल कि गायें एवं गोबर में भी मेरा निवास है। श्रीकृष्ण के तत्व दर्शन अनुसार रुक्मिणी को देह और राधा को आत्मा माना गया है। श्रीकृष्ण का रुक्मिणी से दैहिक और राधा से आत्मिक संबंध माना गया है। रुक्मिणी और राधा का दर्शन बहुत गहरा है। सम्पूर्ण सृष्टि के दर्शन से जोड़कर देखे जाने से इसमें सम्पूर्ण जगत की तीनों अवस्थाओं यथा, स्थूल, सूक्ष्म और कारण दिखलाई देते हैं।स्थूल जो दिखाई देता है जिसे हम अपने नेत्रों से देख सकते हैं और हाथों से छू सकते हैं वह कृष्ण-दर्शन में रुक्मणी कहलाती हैं। सूक्ष्म जो दिखाई नहीं देता और जिसे हम न नेत्रों से देख सकते हैं न ही स्पर्श कर सकते हैं, उसे केवल महसूस किया जा सकता है वही राधा है और जो इन स्थूल और सूक्ष्म अवस्थाओं का कारण है वह हैं श्रीकृष्ण और यही कृष्ण इस मूल सृष्टि का चराचर हैं। इसमें स्थूल देह और सूक्ष्म आत्मा है। स्थूल में सूक्ष्म समा सकता है परन्तु सूक्ष्म में स्थूल नहीं। स्थूल प्रकृति और सूक्ष्म योगमाया है और सूक्ष्म आधार शक्ति भी है लेकिन कारण की स्थापना और पहचान राधा होकर ही की जा सकती है।इसी प्रकार चराचर जगत में सभी भौतिक व्यवस्था रुक्मणी और उनके पीछे कार्य करने की सोच राधा है और जिनके लिए यह व्यवस्था की जा रही है और वह कारण है श्रीकृष्ण। अत: राधा और रुक्मणी दोनों ही लक्ष्मी का प्रारूप है परन्तु जहाँ रुक्मणी देहिक लक्ष्मी हैं वहीं दूसरी ओर राधा आत्मिक लक्ष्मी हैं।


पौराणिक भारतीय परम्परा में प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक कृष्ण है। जिन स्त्रियों से उन्होंने स्वयं प्रेम किया और विवाह किया उनकी संख्या कम नहीं है। फिर भी श्रीकृष्ण -रुक्मिणी की विवाह पश्चात् कथा और केवल रुक्मिणी-परिणय की कथा ही सविस्तार मिलती है। जो वीर है वही स्त्री का हृदय जीतता है इसी का शुध्द उदाहरण कृष्ण और रुक्मिणी की कथा है। इस कथा में कृष्ण तमाम शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों की आंखों के सामने से रुक्मिणी को हर ले जाते हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अध्ययन से इस सत्य का सत्यापन होता है कि यद्यपि यह कथा देश में स्वयंबर के रूप में प्रचलित है और स्वयंवर शब्द से कृष्ण रुक्मिणी परिणय का ध्यान आता है। तथापि विचित्र बात यह है कि रूढ़ अर्थों में यह स्वंयवर था ही नहीं। रुक्मिणी विवाह की कथा श्रीमद्?भागवत पुराण के दशम स्कंध उत्तरार्ध के 52, 53 और 54वें अध्याय में विस्तृत रूप से अंकित है। महाभारत के साथ ही भागवत पुराण, वायु पुराण .पद्म पुराण ,ब्रह्म वैवर्त पुराण , ब्रह्माण्ड पुराण , हरिवंश पुराण आदि ग्रन्थों में रुक्मिणी, रुक्मिणी श्रीकृष्ण विबाह आदि के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण अंकित है । इस प्रेम कथा में रुक्मिणी का प्रेम कृष्ण के प्रेम से किसी तरह कम नहीं। यद्यपि रुक्मिणी लज्जावती स्त्री है फिर भी अपने हृदय का मर्म वही पहले अपने प्रेमी को बताती हैं। महल से भाग चलने की सारी योजना भी उन्हीं की बताई हुई है। इस कथा से यह सिद्ध होता है कि प्राचीन भारत में स्त्री की शक्ति और उसका दर्जा बहुत ऊँचा था।
पौराणिक कथानुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी का जन्म हुआ था।इसीलिए इस दिन को रुक्मिणी अष्टमी कहा जाता है।सौभाग्य, संतान, सुख शांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति की कामना से पौष मास के क्रष्ण पक्ष की अष्टमी व्रत किया जाता है ।पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार देवी रूक्मिणी का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्री कृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थी। इसलिए अष्टमी तिथि को शुभ माना गया है। राधा और देवी रूक्मिणी के जन्म में एक अन्तर यह है कि देवी रूक्मिणी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधा का शुक्ल पक्ष में। तुलसी दास रचित रामचरित मानस के बालकाण्ड के नारद मोह कथानुसार राधा जी को नारद जी के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रूक्मिणी से कृष्ण जी की शादी हुई। राधा और रूक्मिणी यूं तो दो हैं परन्तु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं। मान्यतानुसार वास्तव में देवी राधा और रूक्मिणी एक ही हैं अत: रूक्मिणी अष्टमी का महत्व वही है जो राधाष्टमी का। जो इनकी उपासना करता है उन्हें देवी लक्ष्मी की उपासना का फल प्राप्त होता है। श्री कृष्ण ने देवी रूक्मिणी के प्रेम और पतिव्रत को देखते हुए उन्हें वरदान दिया कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन आपका व्रत और पूजन करेगा और पौष मास की कृष्ण अष्टमी को व्रत कर के उसका उद्यापन यानी समापन करेगा उसे कभी धनाभाव का सामना नहीं करना होगा। जो आपका भक्त होगा उसे देवी लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होगी।
माता रुक्मिणी की पूजा बैशाख शुक्ल द्वादशी को भी किया जाता है और इस तिथिको रुक्मिणी द्वादशी कहा जाता है।
पुरातन ग्रन्थों के अनुसार रुक्मिणी द्वादशी के दिन ही श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर रुक्मिणी से हरण विवाह किया था।इसी कारण ऐसी मान्यता है कि रुक्मिणी द्वादशी के दिन विधिवत पूजा- अर्चना किये जाने से कुंवारी कन्याओं को भी मनचाहा वह मिलता है। इसलिए यह दिन विवाह करने योग्य कन्याओं के लिए विशेष महत्व रखता है । मान्यता है कि रुक्मिणी ने भी श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवी का पूजन किया था।
महाभारत के साथ ही पुराणों में अंकित कथानुसार विदर्भ के राजा भीष्मक की कन्या रूक्मिणी थी, रूक्मिणी के भाई थे रूक्म। रूक्म अपनी बहन की शादी शिशुपाल से करना चाहता था परंतु देवी रूक्मिणी अपने मन में श्री कृष्ण को पति मान चुकी थी। अत: देवी रूक्मणी ने श्री कृष्ण को एक पत्र लिखा। पत्र प्राप्त कर श्री कृष्ण विदर्भ पहुंचे और स्वयंवर के दिन रूक्मिणी को लेकर अपने साथ चल दिए। रुक्मिणी के हरण की बात जानकर शिशुपाल जिससे रूक्मणी की शादी होने वाली थी वह तथा उसका भाई रूक्म अपनी अपनी सेना लेकर कृष्ण को सजा देने के लिए आगे आये लेकिन श्री कृष्ण ने सभी को पराजित कर दिया और रुक्मिणी सहित अपने राज्य को लौट आये जहाँ राक्षस विधि से कृष्ण और रूक्मणी का विवाह सम्पन्न हुआ। कहीं-कहीं इसे अपहरण विवाह भी कहा गया है।पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार श्री कृष्ण की पहली पत्नी श्री रुक्मिणी देवी भगवान की सोलह हजार एक सौ आठ रानियों में श्रेष्ठ पटरानी थी। रुक्मिणी ने विवाह से पहले साधु-संतों के मुख से श्री कृष्ण की लीलाओं का रसपान किया था। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होंने उनसे विवाह करने का निश्चय किया और पत्र के माध्यम से उन्हें अपने दिल की बात बताई। रुक्मिणी जी का भाई उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहता था लेकिन रुक्मिणी जी मन में श्री कृष्ण को अपना पति मान चुकी थी। जिस दिन शिशुपाल और रुक्मिणी का विवाह था उस दिन वह सुबह गौरी पूजन के लिए अपनी सखियों के साथ मंदिर में गई। वहाँ उन्होंने माता गौरी सेश्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की प्रार्थना की। जब वह मंदिर से बाहर निकली तो श्रीकृष्ण ने उनका हाथ थाम कर अपने रथ में बिठा लिया और उन्हें द्वारका की ओर लेकर चल पड़े। जब रूक्मिणी के भाई रूक्मी को इस बात का पता लगा तो वह बड़ी सेना लेकर श्रीकृष्ण के साथ युद्ध करने लगे। श्रीकृष्ण ने उसे युद्ध में हराकर अपने रथ से बांध दिया, किन्तु बलराम जी ने उसे छुड़ा लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने रूक्मिणी को द्वारका ले जाकर उनके साथ विधिवत प्रथम विवाह किया। प्रद्युम्न जी उन्हीं के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, जो कामदेव के अवतार थे। माना जाता है की आज के दिन भगवान श्री कृष्ण, देवी रूक्मिणी और उनके बेटे प्रद्युम्न जी का पूजन करने से घर में हमेशा सुख-शांति, धन-सम्पदा और खुशहाली बनी रहती है। जिन लोगों की शादी न हो रही हो उन्हें अवश्य यह पूजन करना चाहिए।इनमें राधाष्टमी और रूक्मिणी अष्टमी को लक्ष्मी पूजन का दिन बताया गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति रूक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण और देवी रूक्मिणी सहित इनके पुत्र प्रद्युम्न की पूजा करते हैं उनके घर में धन धान्य की वृद्धि होती है। परिवार में आपसी सामंजस्य बढ़ता तथा संतान सुख की प्राप्ति होती है।

Post By Tisha varshney

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